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योगी राज 2.0: चुनौतियों से भरे रहे 100 दिन, सीएम योगी ने हर मोर्चे पर विपक्ष को किया धराशायी
जब दो तिहाई आंकड़ो के साथ योगी आदित्यनाथ की सरकार दोबारा सत्ता में लौटी तो लगा मानो अब योगी आदित्यनाथ बेहद ही आसानी से सरकार चला लेंगे और 5 साल का उनका प्रशासनिक अनुभव उन्हें सबसे आसान सीएम कार्यकाल देने जा रहा है. लेकिन दूसरा कार्यकाल सीएम योगी के लिए कांटो भरा ताज तो नहीं लेकिन इससे कम भी नहीं है. जिस तरह की नई चुनौतियां सरकार बनते ही योगी के सामने आईं वो दिखा गया कि योगी के लिए उनका दूसरा कार्यकाल कहीं ज्यादा चुनौती भरा होने जा रहा है.
योगी के सामने चुनौतियों की शुरुआत मंत्रिमंडल गठन से होती है. माना गया सीएम योगी के मंत्रिमंडल में योगी की नहीं चली और अपवादों को छोड़कर ये मंत्रिमंडल बीजेपी संगठन और केंद्र ने अपनी पसंद का बनाया. दोनों उपमुख्यमंत्री संगठन की पसंद और केंद्र की सहमति से बने और दिनेश शर्मा और महेंद्र सिंह जैसे नाम मंत्रिमंडल से बाहर कर दिए गए. सीएम योगी के लिए ये शुरुआती झटका इसलिए था क्योंकि दोनों ही उनके खास माने जाते थे.
योगी का मंत्रियों को संदेश
केशव मौर्य को हार के बावजूद डिप्टी सीएम बनाया जाना और दिनेश शर्मा को हटाकर ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाना भी सीएम योगी के लिए सुखद संकेत नहीं था लेकिन सीएम योगी ने इसे खामोशी से स्वीकार कर लिया. पिछले तीन महीने में एक भी मौका ऐसा नहीं आया जब सीएम की मंत्रिमंडल को लेकर कोई शिकायत आई हो लेकिन मंत्रिमंडल की शपथ के तुरंत बाद सीएम ने अपने पहली अनौपचारिक कैबिनेट बैठक में ये साफ कर दिया था कि भले ही मंत्री चुनने में उनकी कम चली हो लेकिन मंत्रिमंडल से मंत्रियों को हटाने का अधिकार उनके ही पास है और अगर कोई गड़बड़ हुई तो अपने उस अधिकार का इस्तेमाल करने में वो कतई नहीं हिचकेंगे.
अखिलेश यादव ने योगी के खिलाफ संभाला मोर्चा
सरकार बनते ही एक के बाद कई चुनौतियां सामने आती गईं. राजनीतिक तौर पर सबसे बड़ी चुनौती सदन में योगी के सामने अखिलेश यादव का होना है, विधानसभा में अबतक सीएम योगी एकमात्र और एकछत्र नेता थे उनके सामने विपक्ष का कोई नेता उस कद का नहीं था जो उनके सामने टिक पाता. पूरे पांच साल योगी आदित्यनाथ सदन में छक्के दर छक्के लगाते रहे और विपक्ष धार विहीन दिखाई दिया लेकिन अखिलेश यादव ने संसद से इस्तीफा देकर सदन में उनके लिए चुनौती खड़ी कर दी. अब चाहे सदन में सवाल जबाब हो या पक्ष- विपक्ष की बहस, अखिलेश यादव एक चुनौती के तौर पर उभरे हैं, चाहे केशव मौर्य पर अखिलेश यादव का बिफरना हो या पल्लवी पटेल का हमला. सदन के भीतर 124 सदस्यों वाले सपा गठबंधन ने दिखा दिया कि बेशक वो सत्ता में नहीं आ पाए लेकिन सदन में वो आसानी से अब काबू में आने वाले नहीं हैं.
ज्ञानवापी विवाद बना चुनौती
इन सौ दिनों में काशी ज्ञानवापी मस्जिद में कथित शिवलिंग का मिलना और इस पर दोनों पक्षों की भावनाओं को काबू में करना भी आसान नहीं था जब ऐसा लगा कि अदालत के आदेश के बावजूद ज्ञानवापी का सर्वे नहीं हो पायेगा और मुस्लिम पक्ष ने सर्वे मस्जिद में नहीं होने देने की ठान ली और प्रशासन के हाथ पांव फूल गए तब प्रस्तावित सर्वे के एक दिन पहले सीएम योगी ने काशी विश्वनाथ मंदिर का रूख किया और तब जाकर प्रशासन को विश्वास आया और फिर जाकर ये सर्वे हो पाया.
नूपुर शर्मा को लेकर यूपी में हुए हिंसक प्रदर्शन
बड़ी चुनौती का एक स्वरूप नूपुर शर्मा के विवादित टिप्पणी के बाद आया जब प्रदेश भर में जुमे की नमाज के बाद कई जिलों में पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं, कानपुर प्रयागराज और अमरोहा में हालात काबू से बाहर होते नजर आये तो योगी सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया.
चुनौती कानपुर में इसलिए ज्यादा थी क्योंकि जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति कानपुर में थे, उसी दिन कानपुर में पत्थरबाजी से दंगे जैसे हालात बन गए. लेकिन कानपुर से लेकर प्रयागराज तक योगी ने सख्त तेवर अपना लिए, कानपुर में चंद्रेश्वर हाता पर पत्थरबाजी और प्रयागराज में पुलिस पर हमला हो या पुलिस वैन जलाया जाना. योगी सरकार ने कड़ा रुख अपनाते हुए सख्त कार्रवाई की. ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों के बाद हिंसा के मुख्य आरोपी जावेद मोहम्मद उर्फ जावेद पंप के दो मंजिला घर को तीन बुलडोजर लगाकर ढहा दिया.
फिर चला बाबा का बुलडोजर
प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने जावेद पंप के घर को ढहाने की घटना को जायज ठहराते हुए कहा कि जावेद पंप का घर नाजायज तौर पर बिना किसी पास नक्शे पर बनाया गया था इसलिए इसे ढहा दिया गया और इसका हिंसा से कोई ताल्लुक नहीं है लेकिन जावेद पंप की जेएनयू में पढ़ने वाली बेटी आफरीन ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बना दिया और सरकार को अपनी बात सिद्ध करने में मुश्किल हो रही है. हालांकि, सीएए और एनआरसी की तर्ज पर योगी प्रशासन ने इसे भी लगभग कुचल दिया और पीडीए ने भी जावेद पंप के घर को अदालत में अवैध घोषित कर दिया.
आजम खान योगी नहीं, अखिलेश के लिए बने मुसीबत
आजम खान का जेल से बाहर आना योगी सरकार के लिए चुनौती से कहीं ज्यादा उनके लिए मुफीद साबित हुआ. क्योंकि जेल से बाहर आकर आजम खान ने योगी सरकार से कहीं ज्यादा अखिलेश के लिए मुश्किलें बढ़ाई. आजम योगी पर तो चुप रहे लेकिन अखिलेश और मुलायम पर निशाना साधते रहे और इसी का नतीजा था कि राज्यसभा, एमएलसी चुनाव और आजमगढ़ और रामपुर चुनाव में अखिलेश योगी के लिए ज्यादा मुसीबत नहीं बन सके और योगी आदित्यनाथ ने आसानी से सपा को इन चुनावों में हरा दिया.
पहले राज्यसभा चुनाव को देखिए यहां आजम खान ने 3 में से 2 सीटें हथिया लीं, जो अखिलेश यादव को भारी पड़ा. कपिल सिब्बल जिन्होंने आजम खान को बेल दिलाई उन्हें अखिलेश यादव ने राज्यसभा भेजा जबकि आजम के ही एक और करीबी जावेद अली को भी सपा ने राज्यसभा भेजा, इन दोनों पर आजम खान का टैग था लेकिन जैसे ही तीसरी सीट के लिये डिंपल यादव का नाम आया, सिर्फ नाम ही नहीं आया बल्कि अखिलेश यादव सचमुच डिंपल को राज्यसभा भेजना चाहते थे, उनके पर्चे खरीदकर तैयार किये जा चुके थे लेकिन जयंत चौधरी ने आखिरी वक्त में जो दबाव बनाया उसने अखिलेश को डिंपल यादव का पर्चा वापस लेने को मजबूर कर दिया.
कुछ ऐसा ही विधान परिषद चुनाव में भी हुआ जब 4 में से 2 आजम खान के कोटे में चली गई, जो आजम खान जेल से आने के बाद योगी के लिए मुसीबत बनने के बजाय अखिलेश यादव के लिए ही सिरदर्द बन गए जिसने योगी को नई ऊर्जा दे दी, रही सही कसर आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव के नतीजों ने निकाल दी.
योगी ने चुनौतियों को बनाया ताज
आजमगढ़ से निरहुआ का चुनाव जीतना योगी आदित्यनाथ की निजी जीत और अखिलेश यादव की निजी हार के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि निरहुआ के सामने अखिलेश यादव ने अपने सबसे विश्वस्त चेहरे और भाई धर्मेंद्र यादव को उतारा था. उधर दिनेश लाल यादव निरहुआ योगी की पसंद थे, जिन्हें जिताकर सीएम योगी ने साबित कर दिया कि संगठन कौशल में भी उन्हें महारत है और संगठन से इतर अपने उम्मीदवार को जिताने का कौशल भी है.
अग्निवीर योजना : छात्रों पर नरम दिखी सरकार
जब योगी सरकार के 100 दिन पूरे होने वाले थे तभी देशभर में अग्निवीर योजना के खिलाफ सेना के अभ्यर्थियों का अभियान जोर पकड़ गया. बिहार यूपी और आंध्र प्रदेश में ट्रेनों में आगजनी तोड़फोड़ और देशव्यापी बंद का सिलसिला जोर पकड़ने लगा. ऐसा लगा कि ये आंदोलन पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा, बिहार से सटे बलिया और जौनपुर में ट्रेन और बसों में आग की घटनाएं अचानक ही योगी सरकार के लिए चुनौती बनकर उभरीं, जलती हुए ट्रेन और बसों के दृश्य डराने वाले थे, लेकिन यहां भी योगी आदित्यनाथ पास हो गए और कई मोर्चों पर इस चुनौती को उन्होंने सामने से लिया.
कुछ सख्ती और पुलिस अधिकारियों को फील्ड पर उतारने की रणनीति काम आई. पुलिस अधिकारी समझाते ज्यादा और डराते कम नजर आये, गिरफ्तारी में भी संवेदनशीलता बरती गई, सेना के अभ्यर्थियों को जो किसी पार्टी से जुड़े नहीं थे उन्हें पुलिस ने समझाने पर जोर दिया और पुलिसिया कार्रवाई से उन्हें अलग रखा, धीरे धीरे योगी का ये फार्मूला काम आया. नाराजगी के बावजूद सेना के अभ्यर्थियों ने आंदोलन से दूरी बना ली और राजनीतिक आंदोलन से योगी सरकार ने आसानी से निपट लिया.
लाउडस्पीकर पर काम आई योगी की रणनीति
कुल मिलाकर योगी के 100 दिन चुनौतियों भरे जरूर रहे लेकिन इसने एक योगी की नई तस्वीर सामने आई जो कहीं ज्यादा समावेशी है. धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने में योगी की देशभर में तारीफ हुई, क्योकि मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर हाथ लगाने के पहले योगी ने गोरखपुर के अपने मठ गोरक्षनाथ पीठ के लाउडस्पीकर को हटाया फिर मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि के लाउडस्पीकर को हटवाया उसके बाद पूरे प्रदेश के मस्जिदों और मंदिरों से लाउडस्पीकर हटाना आसान हो गया. महज कुछ दिनों के अभियान से ही 55 हजार लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों से उतार लिए गए.